सरकार ने बुलाई आपात बैठक ,सरसों ,सोयाबीन ओर दालों के दामों को काबू करने के लिए उठा सकती है कड़ा कदम ।

* खाद्य सचिव ने 24 मई को दोपहर तीन बजे तेल-तिलहन की कीमतों पर विचार करने के लिए बैठक बुलाई है। बैठक में कोई बड़ा निर्णय लिया जाएगा। इसकी संभावना कम है। देश की हालत नाजुक है, चाहे कोई स्वीकार करे या न करें उपरोक्त परिपेक्ष में तेल विशेषज्ञों का मत है कि आयात शुल्क घटाने की आस नहीं की जाना चाहिए। आयात शुल्क घटाने का लाभ विदेशी किसानों को मिलता है सरकार को राजस्व का घाटा अलग से होता है। इसके अलावा आयात शुल्क घटाने का एक समय होता है। बेसमय शुल्क घटाने से राहत नहीं मिलती है पिछले 4-6 माह से वैश्विक स्तर पर सोया-पाम तेल के वायदा कारोबार में आंधी-तूफान जैसा माहौल था। पहले तो वैश्विक स्तर पर उत्पादन कम और बाद में सोया तेल का उपयोग बायोडीजल में पिछले वर्ष से अधिक किए जाने की अमेरिका की घोषणा ने तेल बाजार में आग में पेट्रोल डालने का कार्य किया।*

*ब्राजील, अर्जेंटीना में बीच-बीच में मौसम ने साथ नहीं दिए जाने से उथल-पुथल बनी रही। हाल ही में वैश्विक बाजारों में तेजी पर ब्रेक लगा है यह भी चर्चा चल पड़ी है कि वर्ष 2020 के बजट में एग्री ससें लगाया था, उसे फिलहाल हटाया जा सकता है। जिससे तेजी से कुछ राहत मिल सके। देश को आत्मनिर्भर बनाने के जो प्रयास शुरू किए हैं, उन्हें रोकना समझदारी नहीं कहा जावेगा यदि ऐसा निर्णय लिया जाता है तब मानकर चलना चाहिए कि देश की माली हालत निश्चित ही खराब है। केंद्रीय कृषि मंत्री 82 करोड़ रुपए खर्च करके खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता की सीढ़ियां चढ़ने जा रहे हैं। खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर होने के लिए भारत में एक बार फिर से हरित क्रांति की जरूरत है। 50 वर्षों से दलहन एवं खाद्य तेलों का आयात हो रहा है।*

*दलहनों काफी कुछ आत्मनिर्भर हो गए हैं अब तिलहन क्रांति लाना होगी कहा जाता है कि 75000 करोड़ रुपए खाद्य तेलों के आयात पर खर्च होती है। एक चौथाई भाग 1-2 वर्ष तिलहन उत्पादन करने वाले किसानों पर खर्च कर दी जाए तो हरितक्रांति आने में देर नहीं लगेगी। वर्तमान सरकार पिछले 5-6 वर्ष से भाग्य भरोसे चल रही थी और यह भी अहसास कराया था कि महंगाई नहीं बढ़ी। इस वर्ष वैश्विक बाजारों की तेजी ने सरकार एवं इसके अधिकारियों को नहीं करोड़ों जनता को हिलाकर रख दिया है खाद्य सचिव यह कहते हुए भी शार्मिंदगी महससू नहीं कर रहे हैं कि सरकार की बढ़ती कीमत पर लगातार नजर बनाए हुए हैं।*

*घरेलू बाजार में सोया तेल 1000 से 1500 रुपए (10 किलो) पहुंचने पर खाद्य सचिव की निगाहें टक-टकी लगाए क्यों देखती रही। क्या 2000 रुपए होने की राह देख रहे थे खेरची में 85 रुपए लीटर वाला सोया तेल 160 रुपए लीटर होने के बाद न तो सत्तारूढ़ के मंत्रियों, अधिकारियों आम जनता को राहत दी जाएगी ये शब्द भी इनके शब्द कोष में नहीं बचे हैं भारत में कॉटन सीड तेल की घरेलू खपत 13.95 लाख टन पाम 85.50 लाख टन रेपसीड 29.87 लाख टन, सोया तेल 54.50 लाख टन मूंगफली तेल 12.35 लाख टन,सनफ्लावर तेल 25.50 लाख टन एवं अन्य तेलों की खपत 6.19 लाख टन रहने की संभावना व्यक्त की है।*

*व्यापार अपने विवेक से करें*

*महंगाई डायन खाये जात है*

अभी कुछ दिन पूर्व अप्रैल माह के थोक महंगाई सूचकांक के आंकड़े बाहर आये जिसके अनुसार महंगाई दर 10.49 हो गई। दो माह पूर्व यानि फरवरी 21 में यह 4.83 थी और मार्च में यह 7.39 के आसपास थी। इस महंगाई के बढ़ने में सबसे बड़ा योगदान पेट्रोलियम उत्पाद के मूल्यों का बढ़ना है। फरवरी की महंगाई दर में जहाँ यह 2 प्रतिशत था वह मार्च में 10 और अप्रैल में 21 प्रतिशत हो गया। इस दौरान खाद्य वस्तु फरवरी में 3.58 प्रतिशत के लगभग थी वह अप्रैल में 7.58 प्रतिशत हुई। यानि खाद्य वस्तु में दुगनी की वृद्धि हुई तो पेट्रोलियम उत्पाद में कई गुना की वृद्धि हुई। खाद्य वस्तु के मूल्यों में वृद्धि का एक कारण पेट्रोलियम उत्पाद में वृद्धि भी है।

एक रोचक तथ्य यह है कि खुदरा महंगाई दर अप्रैल में 4.29 थी। देखने में तो यह खुश होने वाली बात है पर आश्चर्य का विषय यह है कि थोक महंगाई तो डबल डिजिट में आ गई पर खुदरा महंगाई अभी भी 5 प्रतिशत के नीचे है जबकि 5.03 प्रतिशत थी और मार्च में 5.52 और फरवरी और मार्च में थोक महंगाई 4 और 7 प्रतिशत के आसपास थी।

यह कैसे हो सकता है थोक में वस्तु की कीमत तो बड़े पर खुदरा में कम हो जाए। इसका मतलब तो यह लगाया जाना चाहिए कि निर्माण की लागत बढ़ने से थोक की कीमत तो बड़ी पर खुदरा बाजार में बिक्री ना होने से माल लागत से कम पर बिक रहा है, पर यह कैसे संभव हो सकता है। कोई व्यापारी क्यों लागत से कम पर माल बेचेगा और यह प्रक्रिया बार बार करता रहेगा। यह अगर कहीं संभव है तो कृषि में ही है क्योंकि कृषि उत्पाद जल्द खराब होने वाले होते हैं और किसान के पास उसको सुरक्षित रखने का कोई साधन नहीं होता है और वास्तव में सरकार ने भी वही किया। सब्जी और फल को आधार मानकर खुदरा सूचकांक की दर का आंकलन किया है और चूँकि आम जनता का सरोकार भी खुदरा के मूल्य से होता है इसलिए खुदरा के सूचकांक को जारी करते समय खाद्य की उन वस्तु को चुना जाता है जिनका मूल्य काम हो। और अंत में हम मनोवैज्ञानिक रूप से यह मान लेते है कि सरकारें सही काम कर रही हैं। जबकि खाद्य तेल, दाल, ड्राई फ्रूट अन्य दूसरी चीज़ों के दामों में इधर काफी बढ़ोतरी हुई है। इतना ही नहीं वाइट गुड्स कहे जाने वाले उत्पाद टीवी, फ्रिज, इलेक्ट्रिकल सामान, कार, फर्नीचर आदि सभी सामानों में बेतहाशा वृद्धि हुए है।

अभी तो चौकाने वाले आंकड़े आने बाकी हैं क्यूंकि यह आंकड़े तो अप्रैल के आये हैं मई के आने तो बाकी हैं और मई के माह में पेट्रोलियम उत्पादों में 3-4 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई है। यह तय है कि आने वाले समय में महँगाई का नया दौर आने वाला है, जिसको रोक पाना आसान नहीं होगा

वैश्विक परिदृश्य में देखें तो अमेरिका, ब्रिट्रेन जैसे देशों में महंगाई ने दस्तक दे दी है और वहां .10 की भी वृद्धि हो जाए तो सरकार दबाव में आ जाती है जबकि भारत में कभी नमक के दाम बढ़ने पर सरकार को जनाक्रोश का सामना करना होता था आज वैसा नहीं है। महंगाई के आंकड़े अब हमें डराते नहीं है। यह तय है कि आने वाले समय में महँगाई का नया दौर आने वाला है, जिसको रोक पाना आसान नहीं होगा। बढ़ती महंगाई के कारण आरबीआई पर भी अपने ब्याज दरों को तर्कसंगत रखने का दबाव होगा और वित्त मंत्रालय को भी अपनी मौद्रिक निति की समीक्षा करनी होगी।

आंकड़ों की बाजीगरी कर जनता को गुमराह करना सरकार और उसके तंत्र को भली भांति आता है और यही कारण है कि सरकार कोई भी हो पर नीतियाँ कारगर नहीं होती।

*कृषि मंत्रालय के अनुसार सनफ्लावर की बोवनी 32 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है ओडिशा से समर्थन भाव पर खरीदी शुरू ओडिशा सरकार ने किसानों से 13 मई से दलहन-तिलहन की खरीदी प्रारंभ कर दी है। मूंग 13325 टन उड़द 700 टन मूंगफली 7775 टन और 675 टन सनफ्लावर की खरीदी की जाएगी ओडिशा सरकार ने पंजीकृत किसानों से प्रति एकड़ मूंग 2 क्विंटल, मूगफली 6 क्विंटल की खरीदी का प्रावधान किया है फसल खरीदी का भुगतान सीधे किसानों के खाते में जाएगा। मूंग का समर्थन मूल्य 7196 सनफ्लावर 5885 मूंगफली 5275 रुपए घोषित कर रखा है*

*अप्रैल में खाद्य तेलों का आयात बढ़ा अप्रैल माह में खाद्य तेलों का आयात 10.5 लाख टन हुआ जबकि एक वर्ष पूर्व इसी माह में 8 लाख टन का हुआ था। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन के अनुसार नवंबर से अप्रैल 2020-21 के दौरान खाद्य तेल का कुल आयात 64.2 लाख टन हुआ जबकि गत वर्ष इसी अवधि में 63.1 लाख टन हुआ था एसोसिएशन के अध्यक्ष के अनुसार वर्तमान तेल वर्ष के प्रथम 6 माह में क्रूड पाम तेल सीपीओ का आयात 28.2 लाख टन, सोया तेल का आयात 24.7 लाख टन हुआ, जबकि गत वर्ष इसी समान अवधि में 29.2 लाख टन हुआ था सोया-पाम तेल पर बाजार में कई महीनों बाद पहली बार घबराहट का वातावरण बना है।*

*इंदौर एवं आसपास के अनेक बाजार माह के अंत तक बंद हैं। दूसरी ओर 24 मई को खाद्य मंत्रालय को तेल-तिलहन के भावों पर चर्चा करने के लिए बैठक हो रही है। बैठक में क्या निर्णय लिया जाएगा, यह कहना तो कठिन है, किंतु एग्रीसेस हटाने की चर्चा चल पड़ी है। यदि एग्रीसेस हटाया जाए तब आत्मनिर्भरता से मुंह मोड़ने जैसा होगा। केंद्र सरकार आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वयं युद्ध स्तर पर आज तक कोई योजना नहीं ला सकी है। तिलहनों में हरित क्रांति लाने के लिए भागीरथी प्रयास करने होंगे।*

*लोकल बाजार बंद होने से सोया तेल मांग इस माह के अंत तक ठप रहेगी प्लांटों को सोयाबीन भी नहीं मिल रहा है। कुछ चुनिंदा प्लांटों के पास सोया तेल है उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष अत्याधिक वर्षा की वजह से सोयाबीन की फसल दागी हो गई थी। इस वजह से इस वर्ष बीच का संकट महसूस हो सकता है। सोयाबीन बीज काफी महंगा बिक रहा है। किसानों को सोयाबीन की बोवनी एक सीमा से अधिक में नहीं करना चाहिए। इस माह वैश्विक बाजार में जितनी उथल-पुथल हुई है। अगले वर्ष भी होगी, इसकी कल्पना नहीं करना चाहिए ऐसी स्थिति में सोयाबीन के भाव वास्तविक स्थिति में आ जाएंगे। हालांकि मानसून सामान्य बताया जा रहा है। अत: फसलें अच्छी होंगी। सरसों उत्पादकों को बेचवाली करते रहना चाहिए एक सीमा से उच्च स्तर पर खाद्य तेल की मांग में गिरावट आ जाती है। यह स्थिति सरसों तेल में आगे-पीछे बनने वाली है।*