जीरा तेजी मन्दी को लेकर गुजरात के बड़े व्यापारीयो की राय ,लॉक डाउन हटने के बाद बन सकती है तेजी ।

लॉकडाऊन हटा लेकिन ऊंझा में जीरा बना रहा सुस्त
नई दिल्ली, 3जून (मंडी भाव राजस्थान ) कोरोना वायरस संक्रमण
के मामले नियंत्रण में आने के साथ ही गुजरात सरकार ने
जीरे समेत अन्य विभिन्न जिंसों के व्यापार पर लगी रोक में
कुछ ढील दे दी है। व्यापारिक सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए
बताया कि लॉकडाऊन हटने के बाद भी ऊंझा मंडी
की व्यापारिक गतिविधियां सुस्त बनी हुई हैं। फलतः
में जीरे की तेजी-मंदी अब अन्य राज्यों में लॉकडाऊन लागू
रहने या इसके हटने पर निर्भर रहेगी।
कुछ ढील दिए जाने के बाद भी राजधानी दिल्ली में अभी
7 जून की सुबह 5 बजे तक लॉकडाऊन प्रभावी है। यही
वजह है कि यहां स्थित थोक किराना बाजार में लिवाली
सुस्त पड़ने से जीरा सामान्य 100 रुपए नरम होकर
14,100/14,200 रुपए प्रति क्विंटल रह गया। व्यापारियों
का कहना है कि बीते एक महीने से भी अधिक समय से
लॉकडाऊन चालू होने की वजह से यहां पर इस प्रमुख
किराना जिंस समेत अन्य जिंसों का थोक व्यापार भी
सुस्त
बना हुआ है।
उधर, ऊंझा मंडी स्थित व्यापारी दीक्षित पटेल ने बताया
कि कोविड-19 के मामले नियंत्रण में आने के साथ ही
गुजरात सरकार ने अब लॉकडाऊन के कड़ाई में ढील देनी
शुरू कर दी है। यही वजह है कि ऊंझा मंडी में जीरे, सौंफ
और इसबगोल जैसी जिंसों की नीलामी एक दिन छोड़कर
एक दिन होने लगी है। वैकल्पिक दिनों में नीलामी होने के
कारण आज जीरे की नीलामी नहीं हुई लेकिन बीते दिन
इसमें सुस्ती बनी रही थी।
ऊंझा मंडी स्थित एक अन्य व्यापारी जतिन पटेल ने बताया
कि एक दिन पूर्व मंडी में जीरे की करीब 12-15 हजार
बोरियों की आवक हुई थी। आवक सामान्य से कमजोर
रही थी क्योंकि लॉकडाऊन हटने के बाद भी किसान अभी
अपनी इस फसल की बिक्री सीमित मात्रा में ही कर रहे हैं।
दिसावरों की मांग भी सुस्त बनी रही। इन सब कारणों के
संयुक्त प्रभाव के बाद भी ऊंझा में एक दिन पूर्व जीरे की
कीमत 2550/2600 रुपए प्रति 20 किलोग्राम पर बनी हुई थी।

उन्होंने आगे बताया कि राज्य में कोरोना वायरस की दूसरी
लहर शुरू होने से पूर्व के दो महीनों के दौरान जीरे में
निर्यातकों की उल्लेखनीय मांग बनी हुई थी। इसकी वजह
से इसकी कीमत भी रुक-रुककर बढ़ती जा रही थी लेकिन
संक्रमण के बढ़ते मामलों ने जीरे की तेजी पर ब्रेक लगा
दिया। इसकी वजह से राज्य में फिर से लॉकडाऊन लागू
होने की आशंका को देखते हुए व्यापारिक गतिविधियां भी
दिन-प्रतिदिन घटने लगी थी। श्री दीक्षित पटेल ने बताया
कि फिलहाल स्थिति यह है कि आवक बेशक तुलनात्मक
रूप से नीची हो रही है लेकिन निर्यातकों और दिसावरों के
साथ-साथ स्थानीय स्टॉकिस्टों की मांग काफी कमजोर
बनी हुई है। हालत तो यह है कि कुछ स्टॉकिस्ट बिकवाली
भी करते नजर आने लगे हैं। इसका कारण भविष्य में मंदी
का डर नहीं बल्कि लॉकडाऊन के कारण उपजी नकदी
की कमी की स्थिति से निपटना माना जा रहा है।
मौसम विभाग ने हाल ही में अनुमान जताया था कि 3
जून को केरल के तटों पर मानसून पहुंच जाएगा। यदि
मानसून का आगन मौसम विभाग के अनुमानों के अनुरूप
होता है तो गुजरात में चालू जून महीने के दूसरे पखवाड़े में
मानसून पहुंच सकता है। विभाग ने इस वर्ष मानसूनी वर्षा
सामान्य ही होने का अनुमान व्यक्त किया हुआ है। इतना
ही नहीं, मौसम विभाग ने वर्तमान जून महीने के दौरान देश
के विभिन्न क्षेत्रों में ‘अच्छी’ वर्षा होने की संभावना भी
व्यक्त की है।
व्यापारियों का मानना है कि संभावित सामान्य मानसून न
केवल देश के कृषि क्षेत्र के लिए ही एक अच्छा शगुन है
बल्कि यह जीरे समेत अन्य किराना जिंसों की मांग बढ़ने में
भी सहायक सिद्ध हो सकता है। श्री जतिन पटेल ने बताया
कि कोरोना वायरस और इसकी वजह से देश के अधिकतर
राज्यों में लागू लॉकडाऊन हटने के साथ ही जीरे की मांग
बढ़ने की आशा की जा रही है।
बहरहाल, मसाला बोर्ड के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार
वित्त वर्ष 2020-21 के आरंभिक आठ महीनों यानी अप्रैल-
दिसंबर, 2020 में देश से 3138.90 करोड़ रुपए कीमत के
2.21 लाख टन जीरे का निर्यात हुआ है। इससे एक वर्ष पूर्व
की आलोच्य अवधि में इसकी 1.70 लाख टन मात्रा का
निर्यात हुआ था और इससे 2584 करोड़ रुपए की आय हुई

विभाग ने इस वर्ष मानसूनी वर्षा
सामान्य ही होने का अनुमान व्यक्त किया हुआ है। इतना
ही नहीं, मौसम विभाग ने वर्तमान जून महीने के दौरान देश
के विभिन्न क्षेत्रों में ‘अच्छी’ वर्षा होने की संभावना भी
व्यक्त की है।
व्यापारियों का मानना है कि संभावित सामान्य मानसून न
केवल देश के कृषि क्षेत्र के लिए ही एक अच्छा शगुन है
बल्कि यह जीरे समेत अन्य किराना जिंसों की मांग बढ़ने में
भी सहायक सिद्ध हो सकता है। श्री जतिन पटेल ने बताया
कि कोरोना वायरस और इसकी वजह से देश के अधिकतर
राज्यों में लागू लॉकडाऊन हटने के साथ ही जीरे की मांग
बढ़ने की आशा की जा रही है।
बहरहाल, मसाला बोर्ड के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार
वित्त वर्ष 2020-21 के आरंभिक आठ महीनों यानी अप्रैल-
दिसंबर, 2020 में देश से 3138.90 करोड़ रुपए कीमत के
2.21 लाख टन जीरे का निर्यात हुआ है। इससे एक वर्ष पूर्व
की आलोच्य अवधि में इसकी 1.70 लाख टन मात्रा का
निर्यात हुआ था और इससे 2584 करोड़ रुपए की आय हुई
थी। इन आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2020-21
की अप्रैल-दिसंबर अवधि में मात्रात्मक आधार 30 प्रतिशत
तथा आय में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। व्यापारियों का
मानना है कि आने वाले समय में जीरे की मंदी या तेजी देश
में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में कमी और
लॉकडाऊन हटने पर निर्भर रहेगी। यदि देश को जल्दी ही
कोविड-19 और लॉकडाऊन से उल्लेखनीय राहत मिलती
है तो यह जीरे में तेजी के लिए सहायक हो सकती है।

*अनाज बाजार…*

*बाजरा…धीरे-धीरे और सुधार के आसार ..*
बाजरे में कमजोर कीमतों पर मौली-बरवाला सहित डिस्टलरी प्लांटों की लिवाली बढ़ गयी है। गौरतलब रहे कि *टुकड़ा चावल इस बार डिस्टिलरी प्लांटों को नही मिल रहा है।* लॉकडाउन के चलते उत्पादन में कमी जरूर आयी थी, लेकिन जैसे-जैसे डिस्टलरी प्लांटों में उत्पादन बढ़ेगा, बाजरे की खपत बढ़ती जायेगी।
जानकारों के अनुसार, *पोल्ट्री उद्योग में बाजरे के अलावा और कोई फीड सस्ता नही पड़ता है।** फ़िलहाल जल्दी बाजरे की कोई भी फसल आने वाली नही है। इन परिस्थितियों में वर्तमान कीमतों में आगे के व्यापार में कोई जोख़िम नही लग रहा है।

*मक्की…अभी कुछ दिन और नरमी के..*
मक्के की आपूर्ति उत्पादक मंडियों में लगातार बनी हुई है, लेकिन नमी वाला माल ज्यादा आ रहा है। इस वजह से बढ़िया माल प्रभावित हुआ है। यही कारण है कि बढ़िया माल निर्यात के लिये स्टॉकिस्ट ले रहे है। नमी वाला माल दैनिक खपत में जा रहा है।
उत्पादन में कमी तथा वैश्विक बाजारों में ऊंची कीमतों को देखते हुए आगे दूरगामी परिणाम मक्की का तेजी रहने वाला है। अभी कुछ दिन नमी वाली मक्की और आयेगी, जो तेजी में बाधक रहेगी।

*गेहूं…खरीद 407 लाख…धान 788 लाख टन हुई..*

रबी विपणन सत्र 2021-22 के दौरान उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, दिल्ली एवं जम्मू-कश्मीर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद लगातार जारी है। गौरतलब रहे कि बीते वर्ष की तरह इस वर्ष भी अभी तक 406.76 लाख टन गेहूं खरीदी जा चुकी है जोकि अभी तक की अधिकतम रिकॉर्ड खरीद है।
विशेषज्ञों के अनुसार, बीते वर्ष 360.28 लाख टन गेंहू की खरीद हुई थी, जबकि अगर बीते अधिकतम रिकॉर्ड खरीद की बात करें तो यह 389.92 लाख टन था।

विशेषज्ञां के अनुसार, इस वर्ष 43.55 लाख किसानों को अभी तक इस गेहूं खरीद का फायदा पहुंचा है। अभी तक कुल 80,334.56 करोड़ रुपए की एमएसपी कीमत पर गेहूं की खरीद हुई है।
दूसरी ओर, खरीफ सीजन 2020-21 के लिए धान की खरीद सुचारु रूप से चल रही है। कई राज्यों से 30 मई 2021 तक 787.87 लाख टन धान की खरीद हो चुकी है, जबकि बीते वर्ष यह खरीद 721.25 लाख टन थी।
विशेषज्ञ मानते है कि खरीफ फसल खरीद की इस प्रक्रिया में अभी तक 117.04 लाख किसानों को फायदा पहुंच चुका है। जहां 1,48,750.89 करोड़ रुपए की एमएसपी कीमत की खरीद हो चुकी है।
खरीफ फसल खरीद में धान की खरीद भी अपने अधिकतम स्तर को पार कर चुकी है जिसने अपने बीते अधिकतम रिकॉर्ड 773.45 लाख टन को तोड़ा है। यह रिकॉर्ड 2019-20 सीजन का है।

जनकारों के अनुसार, इसके अलावा राज्यों द्वारा दिए गए प्रस्तावों के आधार पर 107.81 लाख टन दालों और तिलहनों की खरीद की मंजूरी भी खरीफ मार्केटिंग सीजन 2020-21, रबी विपरण सत्र 2021 और ग्रीष्म सत्र 2021 के लिए मूल्य समर्थन योजना के तहत तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, और आंध्र प्रदेश को दी जा चुकी है।
अन्य राज्यों के लिए दालों, तिलहनों और कोपरा की मूल्य समर्थन योजना के तहत खरीद के लिए प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद मंजूरी दी जाएगी ताकि इन फसलों की उचित औसत गुणवत्ता ग्रेड पर खरीद अधिसूचित एमएसपी पर हो सके जिसे 2020-21 के लिए सीधे पंजीकृत किसानों से किया जा सकता है। यदि संबंधित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे जाते हैं। यह खरीद केंद्र की नोडल एजेंसियों द्वारा राज्यों की नामित खरीद एजेंसियों के माध्यम से की जा सकती है।

जानकारों के अनुसार, बीते माह 30 मई 2021 तक सरकार ने नोडल एजेंसियों के माध्यम से खरीफ 2020-21 और रबी 2021 के दौरान 7,14,695.80 लाख मीट्रिक टन मूंग, उड़द, तूड़, चना, मसूर, मूंगफली, सरसों और सोयाबीन की 3,741.39 करोड़ रुपए की एमएसपी मूल्य की खरीद की है, जिससे तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा और राजस्थान के 4,25,586 किसानों को लाभ पहुंचा है। इसी तरह 52.40 करोड़ रुपए की एमएसपी कीमत वाली 5089 मीट्रिक टन कोपरा फसल की खरीद की जा चुकी है जिससे कर्नाटक और तमिलनाडु के 3961 किसानों को 2020-21 के सीजन में फायदा हुआ है।
जानकार मानते है कि वर्ष 2021-22 के सीजन के लिए तमिलनाडु से 51000 मीट्रिक टन की कोपरा फसल की खरीद की मंजूरी दी जा चुकी है जो राज्य सरकार द्वारा तय तारीख से शुरू हो जाएगी।
दालों और तिलहनों की उपलब्धता के आधार पर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश तय तारीख पर खरीद की प्रक्रिया शुरू करने के लिए जरूरी इंतजाम कर रहे हैं।