कई बार असलियत से दूर होते हैं दोनों के मानसून पूर्वानुमान के आंकड़े ,भारत सरकार के मौसम विभाग और स्काईमेट के आंकड़ों कब कितना फर्क आया है देखिए पूरी जानकारी के साथ ।

राजेंद्रपुरी गोस्वामी:
विश्लेषण
स्काईमेट का मानसून आ गया, IMD का 3 जून को : 2012 से हर साल अलग भविष्यवाणी;

2015 में दोनों ने कहा था 100% से ज्यादा बारिश होगी, हुई 86%

केरल में बीते दो दिनों से बारिश हो रही है। निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट ने रविवार दोपहर मानसून के केरल पहुंचने का ऐलान कर दिया। लेकिन मौसम विभाग (IMD) का कहना है कि मानसून 3 जून को केरल पहुंच सकता है। देश के मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली इन दोनों प्रमुख संस्‍थाओं के अनुमान कभी एक समान नहीं होते।

बीते 10 सालों के आंकड़े हमने देखे, मानसून की तारीख से लेकर बारिश के औसत तक में दोनों के आंकड़े अलग होते हैं। इतना ही नहीं, कई बार ये सच्चाई से काफी दूर भी होते हैं। 2015 में स्काईमेट ने देश में दीर्घावधि औसत (LPA) के मुकाबले 102% और मौसम विभाग ने 93% बारिश का अनुमान लगाया था, लेकिन वास्तविक बारिश 86% हुई। LPA 880 मिलीमीटर है।

फिलहाल स्काईमेट क्या कह रहा है
स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पहलावत ने कहा, सभी मानक पूरे हो रहे हैं। पहला, केरल, लक्षद्वीप, कर्नाटक के 14 केंद्रों में से 60% में 10 मई के बाद दो दिनों तक 2.5 मिलीमीटर से अधिक बारिश दर्ज हो जाए। दूसरा, वहां जमीनी सतह से तीन-चार किलोमीटर तक पश्चिमी हवाएं चलने लगें। तीसरा, जमीनी सतह के करीब हवा की गति 30-35 किलोमीटर प्रतिघंटा तक रहे। ये सभी मानक, केरल में पूरे हो चुके हैं। ये मानसून की आमद है।

मौसम विभाग का क्या दावा है

मौसम विभाग ने कहा कि 10 मई के बाद ‘ताऊ ते’ तूफान अरब सागर से गुजरा। तब लक्षद्वीप, केरल, कर्नाटक के तटीय इलाकों में 2.5 मिलिमीटर से 100-150 गुना ज्यादा (20-30 सेमी) तक बारिश दर्ज हुई थी। रेडिएशन भी काफी नीचे आ गया था। तब क्या हमें केरल में मानसून आने की घोषणा कर देनी चाहिए थी। विभाग अपने तय मानकों का उल्लंघन नहीं कर सकता।

इन अनुमानों से आम लोगों पर क्या असर पड़ता है।

कम और ज्यादा बारिश का असर सीधे देश की GDP पर पड़ता है, क्योंकि मानसून की स्थिति से ही ये अंदाजा लगाया जाता है कि इस साल सूखा पड़ेगा या बाढ़ आने वाली है। इसीलिए मौसम की जानकारी देने वाली प्राइवेट भारतीय एजेंसी स्काईमेट हर साल मानसून (जून से सितंबर) के दो महीने पहले यानी अप्रैल में ही बता देती है कि कितनी बारिश की संभावना है।

स्काईमेट के जीपी शर्मा कहते हैं कि ये पूर्वानुमान लगाने के लिए उनकी मौसम वैज्ञानिकों की टीम देश के हर 9 किलोमीटर के बाद एक जांच करती है। वहां हवा के बहाव, तापमान, दबाव की स्थिति को नापती है और उसके आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार करती है।

पहले हर 27 किमी के बाद जांच करता था स्काईमेट, टारगेट हर 3 किमी का
इंडियन एयरफोर्स में एयरमार्शल रहे जीपी शर्मा कहते हैं कि पहले स्काईमेट हर 27 किलोमीटर की दूरी के बाद जांच कर के अनुमान लगाता था, लेकिन अब तकनीकी विकास के चलते हर 9 किलोमीटर के बाद जांच तक पहुंच गए हैं, लेकिन ये आखिरी पड़ाव नहीं है। संस्‍था का लक्ष्य है कि हर तीन किमी की जांच तक पहुंचा जाए, तब जाकर और ज्यादा सटीक जानकारी दी जा सकेगी।

2015 में अनुमान से 16% कम बारिश, राजस्‍थान-गुजरात में बड़ी बात
ठीक इसी तरह अप्रैल-मई में ही भारत सरकार का मौसम विभाग (IMD) भी अपने अनुमान बताता है। इन्हीं दोनों को आधार मानकर कृषि, बाढ़ और आपदाओं की तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। ऐसे में इन दोनों संस्‍थाओं के आंकड़ों में कितनी शुद्धता है, ये जानना बेहद जरूरी है। इसीलिए हमने खबर की सबसे पहली इमेज में बीते 10 सालों में स्काईमेट, मौसम विभाग के अनुमानों और वास्तविक बारिश के आंकड़ों को रखा है।

आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में स्काईमेट ने LPA के मुकाबले 102% बारिश होने और मौसम विभाग ने 93% बारिश होने की संभावनाएं जताई थीं, जबकि वास्तविक बारिश LPA के मुकाबले 86% ही हुई। ये बीते 10 सालों में सबसे खराब अनुमान लगाया गया था। तब के अनुमान से 16% कम बारिश हुई। जीपी शर्मा कहते हैं कि केरल और कर्नाटक में 16% बारिश के कम या ज्यादा होने से अधिक प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन राजस्‍थान और गुजरात के किसानों के लिए ये बड़ी बात होती है। इसलिए मानसून को लेकर सटीक अंदाजा लगाना बेहद जरूरी है।

उनका कहना है, ‘गलतियों के आसार हमेशा बने रहते हैं, क्योंकि भारत संस्कृति में ही नहीं, वायुमंडल के लिहाज से भी काफी विविधता से भरा है। यहां जंगल, पर्वत और सपाट तीनों का भरपूर मिश्रण है। इसलिए एकदम सही अंदाजा लगा पाना बेहद कठिन है।’

पश्चिमी विक्षोभ का असर जून से सितंबर वाले साउथ-वेस्ट मानसून पर बेहद कम
भारत में बरसात के लिए एक बड़ी वजह पश्चिमी देशों से चलने वाली हवाएं भी हैं। स्काईमेट के महेश पलावत के अनुसार हमारे देश में लगातार पश्चिम से पूर्व की ओर हवा चलती है। ये हवाएं यूरोपीय देशों से शुरू होती हैं। चूंकि रास्ते में इराक, ईरान और पाकिस्तान में कोई ऐसा पहाड़ नहीं है, जो उनका रास्ता मोड़ दे, इसलिए

वो जम्मू के पर्वतों से टकराने के बाद उत्तर भारत में अच्छी-खासी बरसात का कारण बनती हैं। इसके चलते पंजाब, हरियाणा और यहां तक कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक में बारिश होती है, लेकिन अक्टूबर से लेकर मार्च के बीच। यानी सर्दियों में होनी वाली बारिश इसके कारण होती है।
जीपी शर्मा कहते हैं कि भारत में जिसे वाकई वर्षा ऋतु माना गया है, उस दौरान जून से लेकर सितंबर तक बारिश गर्मी के दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बने वाष्प के चलते होती है। इसमें पश्चिमी विक्षोभ की भूमिका अधिक प्रभावशाली नहीं होती।

जब सरकार अनुमान जाहिर करती है तो प्राइवेट एजेंसी के पूर्वानुमान की जरूरत क्यों?

स्काईमेट के जीपी शर्मा कहते हैं कि पहले मौसम विभाग के आंकड़ों में और असल में बारिश के आंकड़ों में काफी फर्क नजर आता था। जबसे स्काईमेट ने भारत में काम शुरू किया है, तब से मौसम विभाग ने भी काफी सतर्कता के साथ काम शुरू कर दिया है। प्राइवेट एजेंसी की जरूरत का सीधा कोई मतलब नहीं है, लेकिन प्रतियोगिता बढ़ने से देश के किसानों और लोगों को सही जानकारी मिलती है तो इसमें कोई नुकसान भी नहीं है।